100% Powerful Solah Somvar Vrat Katha

सोलह सोमवार व्रत कथा

Solah Somvar Vrat Katha

जो भी श्रद्धा पूर्वक Solah Somvar Vrat Katha करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। देवों के देव महादेव अपने भक्तों की इच्छाओं को पूरा करते है। यह Solah Somvar Vrat Katha कार्तिक और माघ महीने के शुकल पक्ष के पहले सोमवार से शुरू होता है।

कुंवारियां लड़कियां मनवांशित वर की प्राप्ति के लिए Solah Somvar Vrat रखती है। माना जाता है की भगवान् भोलेनाथ जल्दी प्रसन्न होने वाले देव है। सच्चे मन से की गयी पूजा भक्ति से भोलेनाथ अपने भक्तों को मानवंशित फल प्रदान करते है। आइए अब Solah Somvar Vrat Katha की विधि के बारे में जानते है।

Solah Somvar Vrat Katha Vidhi in Hindi

  • इस व्रत में सुवह उठकर स्नान आदि करके, साफ़ वस्त्र पहन कर भगवान भोलेनाथ जी का ध्यान करके भोलेनाथ पर जल चढ़ाना चाहिए।
  • उसके बाद बिलपत्री, फूल, भांग, चावल चढ़ाना चहिये।
  • उसके बाद धूप दीप जलाकर भगवान भोलेनाथ जी की पूजा करनी चाहिए। पूजा के बाद Solah Somvar Vrat Katha करनी अथवा सुननी चाहिए।
  • इस सोमवार व्रत में आपको सिर्फ एक ही समय भोजन करना चाहिए।
  • यह Solah Somvar Vrat तीसरे पहर तक ही होता है, मतलब शाम तक इस व्रत को रखा जाता है। इस Solah Somvar Vrat में भोजन के समय नमक को ना खाएं।
  • किसी का बुरा न सोचें, भगवन भोले नाथ का सच्चे मन से ध्यान करें।

Solah Somvar Vrat Katha

Solah somvar vrat

एक समय की बात है भगवान भोले नाथ जी माता पार्वती जी के साथ भ्रमण करते करते मृत्युलोक में अमरावती नाम की अति रमणीक पूरी में आएं। वह पूरी सद्र्श ही सभी प्रकार के सुखों से परिपूर्ण थी। उस पूरी के राजा जी ने भगवान  भोलेनाथ जी का बड़ा ही सूंदर मंदिर बनवाया हुआ था। उसी मंदिर में भगवान भोले नाथ जी माता पार्वती जी के साथ निवास करने लगे।

एक दिन माता पार्वती जे भगवन भोलेनाथ जी को प्रसन्न देख कर बोली, चलो भगवन आज चौसर खेलते है। भगवान भोलेनाथ जी ने माता पार्वती जी की बात को मान लिया और चौसर खेलने के लिए तैयार हो गए। माता पार्वती जी ने और भोलेनाथ जी ने चौसर खेलना शुरू किया। तभी उसी मंदिर में पुजारी ब्राह्मण भी पूजा करने के लिए आया। माता पार्वती जी ने पुजारी जी से पूछा पुजारी जी बताइए इस चौसर की बाजी में किसकी जीत होगी।

पुजारी ने उत्तर दिया, की जीत तो महादेव जी की ही होगी। कुछ समय खेलने के बाद, बाजी समाप्त होने पर जीत माता पार्वती जी की हुयी। इस पर माता पार्वती जी को पुजारी ब्राह्मण पर बड़ा गुस्सा आया, भोलेनाथ जी ने उनको शांत रहने के लिए कहा पर माता पार्वती जी ने भोलेनाथ जी की बात को नहीं माना और गुस्से में उस पुजारी ब्राह्मण को कोढ़ी होने का श्राप दे दिया।

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कुछ समय के बाद पुजारी कोढ़ी हो गया। कोढ़ी होने के कारण अनेक प्रकार के दुखों को सहने लगा। जब पुजारी को ऐसे ही कष्ट सहते काफी दिन हो गए तो अचानक एक दिन स्वर्ग की अप्सराएँ उसी मंदिर में भगवान भोलेनाथ जी की पूजा करने के लिए आयी। पूजा करने के बाद जब उन्होंने कोढ़ी पुजारी को दयाभाव से पूछा की उसकी यह हालत कैसे हुयी तो पुजारी जी ने भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती जी के चौसर के खेल के कारण माता पार्वती द्वारा दिए गए श्राप के बारे में बताया।

पुजारी के दुखभरी कहानी सुन कर अप्सराएं ब्राह्मण पुजारी से कहने लगी की अब तुम्हे और अधिक कष्ट सहन नहीं करना पड़ेगा। भगवान् भोलेनाथ जी की महान कृपा से तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जायेंगे। तो पुजारी जी ने पुछा की वह कैसे। तो अप्सराओं ने भोलेनाथ के Solah Somvar Vrat Katha के बारे में बताया और बोली की पुजारी जी आप सोलह सोमवार का व्रत कथा करें, भगवान शंकर तुम्हारे सभी कष्ट को दूर कर देंगे।

पुजारी जी ने अप्सराओं का धन्यवाद करते हुए व्रत की विधि पूछी। तब अप्सराओं ने पुजारी जी को Solah Somvar Vrat Katha की विधि के बारे में बताया। ब्राह्मण पुजारी जी ने श्रद्धा भाव से  विधिपूर्वक सोलह सोमवार व्रत शुरू कर दिया। व्रत के प्रभाव से पुजारी जी रोगमुक्त हो गए।

कुछ समय बीत जाने के बाद एक दिन भोलेनाथ और माता पार्वती पुनः उसी मंदिर में आये तो पुजारी जी को रोगमुक्त देखकर माता पार्वती जी ने पूछा, मेरे दिए हुए श्राप से मुक्ति पाने के लिए आप ने क्या उपाय किया। हाथ जोड़ कर ब्राह्मण पुजारी ने कहा, हे माता पार्वती! अप्पसराओं द्वारा बताये गए Solah Somvar Vrat Katha के कारण मेरे सारे कष्ट दूर हो गए।

इस बात से माता पार्वती जी बहुत खुश हुयी। माता पार्वती जी ने पंडित से 16 सोमवार व्रत की विधि पूछी और श्रद्धा भाव से विधिपूर्वक इस Solah Somvar Vrat को किया, और इस 16 सोमवार व्रत के प्रभाव से उनके दूर गए हुए पुत्र कार्तिकेय जी सव्यं आकर माता पार्वती जी के आज्ञाकारी हुए।

फिर कार्तिकेय जी ने माता पार्वती जी से पूछा, माता मुझे बताइए आपने ऐसा क्या किया की मैं सव्यं आपके पास चला आया। तो माता पार्वती जी ने वही Solah Somvar Vrat Katha के बारे में बताया। कार्तिकेय  जी ने माता पार्वती जी से 16 सोमवार व्रत की विधि पूछी, और इस व्रत को किया, तो इससे उनका विछड़ा हुआ मित्र मिल गया। मित्र ने कार्तिकेय जी से आकस्मिक मिलने का रहस्य पुछा तो कार्तिकेय जी ने भी उसको Solah Somvar Vrat Katha के बारे में बताया।

अब कार्तिकेय जी के मित्र ने भी इस व्रत को श्रद्धा भाव से विधिपूर्वक विवाह होने की इच्छा से किया। व्रत के प्रभाव से वह ब्राह्मण मित्र किसी कार्यवश विदेश में गया तो उसी समय वहाँ के राजा जी की लड़की का स्वयंवर था, दूर दूर देशों से कई राजकुमार उस लड़की से विवाह करने की इच्छा से वहां आये हुए थे। उधर दूसरी तरफ राजा ने यह प्रण किया था की यह हथिनी जिस किसी व्यक्ति के गले में आभूषणों से सजी माला डालेगी, उसी के साथ मैं अपनी लड़की का विवाह कर दूंगा।

ब्राह्मण मित्र भी स्वयंवर देखने की इच्छा से वहां आकर एक और बैठ गया। भाग्यवश हथिनी ने वह माला जाकर उस ब्रामण मित्र के गले में डाल दी। राजा जी ने अपनी प्रतिज्ञानुसार अपनी लड़की का विवाह उस ब्रामण के साथ कर दिया, और उसे धन धान्य देकर संतुष्ट किया। ब्रामण उस कन्या के साथ शादी करके बहुत खुश हुआ और ख़ुशी ख़ुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगा।

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एक दिन अचानक राजकन्या ने अपनी ब्राह्मण पति से पूछा की आपने ऐसा कोण सा पुण्य का काम किया था की हथिनी ने सभी आये हुए राजकुमारों को छोड़कर आपके गले में माला डाली। तब ब्राह्मण पति ने अपनी पत्नी को बताया की उसने अपने मित्र कार्तिकेय द्वारा बताये गए Solah Somvar Vrat को किया जिसके कारण मेरी शादी तुमसे हुयी।

ब्रामण पत्नी सुनकर बड़ी खुश हुयी और उसने भी पुत्र प्राप्ति हेतु इस Solah Somvar Vrat को विधिपूर्वक किया, तो भगवान भोलेनाथ की कृपा से उसके गर्भ से एक बहुत ही सुन्दर सुशील पुत्र पैदा हुआ। बड़े होकर जब पुत्र ने अपनी माता से पुछा की हे माता आपने ऐसा कोण सा तप किया था की मेरा जैसा पुत्र आपकी गर्भ से पैदा हुआ।

तो माता ने वही Solah Somvar Vrat के बारे में बताया। फिर पुत्र भी इस मनोवांशित फल देने वाले व्रत को राज्याधिकार पाने की इच्छा से करने लगा। तब किसी देश के राजा के दूतों ने उसे राजकन्या के योग्य समझ कर बंधी बना कर राजमहल ले गए। राजा ने अपनी लड़की का विवाह उससे कर दिया। कुछ समय बाद बृद्ध राजा की मृत्यु हो गयी। तब राजा की मृत्यु के बाद इस ब्रामण पुत्र को राज सिंहासन पर बैठाया गया, क्योंकि उस राजा के कोई और संतान नहीं थी। ब्रामण पुत्र राज्याधिकार पाने के बाद भी उस Solah Somvar Vrat Katha को करता रहा।

जब सत्रवहॉं सोमवार आया तो उसने अपनी पतनी को पूजा समग्री लेकर शिवालय चलने को कहा। पर राजकन्या ने उसकी आज्ञा को ना मानकर सामग्री को दास दासिओं के हाथ भिजवा दी। जब राजा ने शिवालय जाकर पूजा समाप्त की तब उसे आकाशवाणी हुयी की हे राजा ! तुम अपनी पत्नी को राजमहल से निकाल दो नहीं तो यह तुम्हारा सर्वनाश कर देगी।

राजा को यह बात जानकर बड़ा आशचर्य और दुःख हुआ और अपनी राजसभा में आकर उस आकाशवाणी के बारे में बात की। यह बात सुन कर सभी सभासदो को बड़ा दुःख और आश्चर्य हुआ की जिस राजकन्या के कारण इस राजा को राज प्राप्त हुआ उसी को राजमहल से निकालने के बारे में कह रहा है। पर राजा ने शिव की आकाशवाणी को मानते हुए उस रानी को राजमहल से निकाल दिया, रानी भाग्य को कोसती हुयी राजमहल से चली जाती है। ना पैरों में जूते, फ़टे हुए वस्त्र भूख प्यास से परेशान चलती एक अपरचित नगर में पहुंची।

solah somvar vrat katha in hindi

उस नगर में एक बुढ़िया सूत कातकर बेचने जा रही थी। रानी की ऐसी दशा देखकर वह रानी से बोली मैं बृद्ध हु भाव आदि की पता नहीं। फिर रानी ने बुढ़िया के सिर से गठरी उतार कर अपने सर पर रख ली। अब थोड़ी ही दूर गयी थी की अचानक तेज आंधी चलने लगी और गठरी रानी के सिर से उड़ जाती है। बुढ़िया रोती और पश्ताती रह गयी और रानी को दूर रहने को कह दिया। उसके बाद रानी एक तेली के घर गयी तो तेली के सभी तेल के घड़े चटक गए।

तेली ने ऐसा देखर रानी को भाग्यहीन समझ कर अपने घर से निकाल दिया। रानी दुखी होकर एक नदी पर पानी पीने को गयी तो नदी का सारा जल सूख गया। उसके बाद फिर रानी एक बाग़ में जाती है जहाँ पर एक सरोवर था। रानी सरोवर में पानी पीने के लिए सीढियाँ उतरती है और जैसे ही पानी पीने के लिए जल को स्पर्श करती है तो सरोवर के जल में कीड़े पड़ जाते है और सारा पानी गन्दा हो जाता है।

रानी अपने भाग्य को कोसती हुई उसी गंदे पानी का जलपान करती है और एक पेड़ की शीतल शाया के नीचे विश्राम करने के लिए जाती है तो पेड़ के सारे पत्ते गिर जाते है। सरोवर की और पेड़ों की ऐसी दशा देखकर ग्वालों ने यह बात अपने गोसाई जी को बताई जो की उसी वन में एक मंदिर में रहते थे। फिर ग्वाले उस रानी को पकड़ कर अपने गोसाई के पास ले गए। रानी की मुख की कांति और शोभा देखकर गुसाई जी समझ जाते है की अवश्य ही यह किसी विपत्ति की मारी हुयी है।

गुसाई जी ने धैर्य बधाँते हुए उस रानी को कहा की तुम मेरे आश्रम में रह सकती हो मैं तुम्हे अपनी पुत्री के समान रखूँगा। तुम्हे यहाँ पर कोई कष्ट नहीं होगा। यह सुनकर रानी को थोड़ा धीरज हुआ और आश्रम में रहने लगी। पर वह जो भी जल भर कर लाती और जो भी भोजन बनाती उसमे कीड़े पड़ जाते। अब तो गुसाई जी को भी बड़ा आश्चर्य हुआ और रानी से कहने लगे पुत्री तुम पर कोण से देवता का कोप है जिससे तेरी ऐसी दशा हुयी है। तब रानी ने Solah Somvar Vrat Katha की समग्री को शिवालय न ले जाने की बात के बारे में बताया।

तब गुसाई जी ने अनेक प्रकार से भगवान भोलेनाथ जी स्तुति की और रानी से बोले हे पुत्री तुम सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाले Solah Somvar Vrat Katha करो, तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जायेंगे। गुसाई की आज्ञा मानकर Solah Somvar Vrat Katha की और सत्रहवें सोमवार के पूजन से राजा के मन में विचार आया की रानी को गए हुए बहुत समय हो गया है, ना जाने कहाँ कहाँ भटक रही होगी। अब उसे ढूंढ़ना चाहिए।

यह सोच कर राजा ने अपने सिपाहीओं को चारों दिशाओं में रानी को ढूंढ़ने के लिए भेजा। दूत रानी जी को ढूंढ़ते ढूँढ़ते गुसाई जी के आश्रम में आ पहुंचे और रानी को अपने साथ चलने को कहा पर गुसाई जी ने रानी को लीजाने के लिए मना कर दिया। दूतों ने राजा को रानी के बारे में सभी बात कह सुनाई। राजा यह सब सुनकर स्वयं गुसाई जी के आश्रम में रानी को लेजाने के लिए पहुंचे।

राजा जी ने गुसाई जी से प्रार्थना की हे महाराज यह मेरी पत्नी है, भगवान भोलेनाथ के कोप के कारण मेने इसे त्याग दिया था पर अब शिव का कोप इस पर से शांत हो गया है और अब मैं इसे लेने आया हूँ। गुसाई जी ने राजा की बातों को सच मानते हुए रानी को राजा के साथ जाने के लिए आज्ञा दी। रानी बड़ी ही ख़ुशी के साथ अपने राजमहल में वापिस आयी।

तब नगरवासिओं ने पुरे नगर को खूब सजाया और ढोल नगारे बजने लगे और घर घर मगल गान होने लगे। विद्वानों द्वारा वेद मन्त्रों के उपचारण के साथ राजा रानी का स्वागत किया गया। राजा जी ने ब्राह्मणो को धन दान किया और गरीबों को भोजन खिलाया। इसी प्रकार राजा और रानी भोलेनाथ की अपार कृपा से सुखमयी और ख़ुशी से जीवन व्यतीत करने लगे।

अब तो राजा और रानी हर वर्ष Solah Somvar Vrat Katha करने लगे और अनेक प्रकार के सुखों को भोगने के पश्चात् शिवपुरी की प्राप्त हुए।ऐसे ही जो भी मनुष्य श्रद्धा भाव से एकाग्रचित मन से इस Solah Somvar Vrat को और Solah Somvar Vrat Katha को करता है और शिवपूजन करता है वह इस संसार में सभी सुखों को भोगते हुए अंत में शिवपुरी को प्राप्त होता है। क्योंकि यह व्रत सभी प्रकार की मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है।

निष्कर्ष (Conclusion)

मित्रों आज हमने Solah Somvar Vrat Katha और Solah Somvar Vrat benefits के बारे में पढ़ा और जाना की किस प्रकार Solah Somvar Vrat  करने से Solah Somvar Vrat Katha पढ़ने और सुनने मात्र से ही सभी दुःख दूर हो जाते है और मनवांशित फल की प्राप्ति होती।

हमें पूरा विश्वास है की आपको Solah Somvar Vrat Katha पढ़ कर बहुत अच्छा लगा होगा। आपसे निवेदन है की इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें। धन्यबाद!

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